Learn easy Hindi Grammar with PDF book worksheets for Class 10. It is based on CBSE / NCERT syllabus which includes various topic such as Samas, Karak, Pad Parichay, Vakya bhed, Ras in Hindi etc. from beginner to advanced level.
Please read Hindi Grammar for Class 5, Class 6, Class 7, Class 8, Class 9, Class 10 for better understanding and Complete Hindi Grammar Content(पूरा हिंदी व्याकरण).
- रस Ras Grammar in Hindi (ras for class 10)
- रस के अंग ras ke avyay
- रस के प्रकार (रस के ग्यारह भेद होते है) ras ke bhed
- वाच्य परिभाषा उदाहरण vachya in hindi
- वाच्य के भेद के उदाहरण vachya ke bhed
- समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण Samas in Hindi
- पद-परिचय pad parichay
- पद पाँच प्रकार के होते हैं pad parichay ke bhed
- कारक – परिभाषा, भेद और उदाहरण Karak in Hindi
- वाक्य भेद – रचना के आधार पर वाक्य के भेद for class 10
रस Ras Grammar in Hindi (ras for class 10)
रस की परिभाषा रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनंद’। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे ‘रस’ कहते है। इसके बिना साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। रस काव्य का मूल आधार ‘ प्राणतत्व ‘ अथवा ‘ आत्मा ‘ है रस का संबंध ‘ सृ ‘ धातु से माना गया है।
रस के अंग ras ke avyay
रस के चार अंग है – स्थायी भाव, अनुभाव, विभाव, व्यभिचारी (संचारी)
स्थायी भाव- स्थायी भाव वही हो सकता है जो रस की आवस्या तक पहुँचता है। काव्यचित्रित श्रृंगार आदि रसों के मूलभूत कारण ‘स्थायी भाव’ हैं। साहित्य में वे मूल तत्व जो मूलतः मनुष्यों के मन में प्रायः सदा निहित रहते और कुछ विशिष्ट अवसरों पर अथवा कुछ विशिष्ट कारणों से स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं।
विभाव- जो व्यक्ति, पदार्थ अथवा बाह्य विकार अन्य व्यक्ति के हृदय में भावों को जाग्रत् करते हैं, उन भावोद्बोधक अथवा रसाभिव्यक्ति के कारणों को ‘विभाव’ कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं- आलंबन विभाव- जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं, उन्हें आलंबन विभाव कहते है। उद्दीपन विभाव- जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगता है, उन्हें उद्दीपन विभाव कहते है।
अनुभाव- वाणी तथा अंग-संचालन आदि की जिन क्रियाओं से आलम्बन तथा उद्दीपन आदि के कारण आश्रय के हृदय में जाग्रत् भावों का साक्षात्कार होता है, उन्हें व्यापार अनुभाव कहते है।
व्यभिचारी (संचारी)- जो भाव, स्थायी भावों को अधिक पुष्ट करते हैं, उन सहयोगी भावों को ‘संचारी भाव’ कहा जाता है।
रस के प्रकार (रस के ग्यारह भेद होते है) ras ke bhed
शृंगार रस – (रति/प्रेम) उदाहरण (i) संयोग शृंगार : बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। (ii) वियोग श्रृंगार : निसिदिन बरसत नयन हमारे।
हास्य रस- (हास) जहाँ किसी काव्य को पड़ने, देखने और सुनने से ह्रदय में जो आनंद की अनुभूति होती है उसे हास्य रस कहते है। उदाहरण- तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
करुण रस- (शोक) इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है। उदाहरण- हा! सही न जाती मुझसे अब यह भूख की ज्वाला। कल से ही प्यास लगी है, हो रहा हृदय मतवाला॥
वीर रस – (उत्साह) जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है।
रौद्र रस – (क्रोध) जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं।
भयानक रस- (भय) जब किसी भयानक या बुरे व्यक्ति या वस्तु को देखने या किसी दुःखद घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता अर्थात परेशानी उत्पन्न होती है उसे भयानक रस कहते हैं।
बीभत्स रस – (घृणा) अनुचिकार वस्तुए तथा दुर्गधपूर्ण स्थान के विवरण में बीभत्स रस होता है।
अदभुत रस- (आश्चर्य) जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे अदभुत रस कहते हैं।
शांत रस- (निर्वेद) जहा संसार के प्रति निर्वेद रस रूप में परिणत होता है वह शांत रस होता है।
वत्सल रस- (वात्सल्य रति) जहाँ माँ-बाप का अपनी संतान के प्रति जो प्रेम होता है उसमें होता है।
भक्ति रस- (अनुराग) इस रस में ईश्वर कि अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन होता है अर्थात इस रस में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है।
वाच्य परिभाषा उदाहरण vachya in hindi
क्रिया के उस परिवर्तन को वाच्य कहते हैं, जिसके द्वारा इस बात का बोध होता है कि वाक्य के अन्तर्गत कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है। इनमें किसी के अनुसार क्रिया के पुरुष, वचन आदि आए हैं। इसका तात्पर्य यह है की वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन या तो कर्त्ता के अनुसार होते है, अथवा कर्म या भाव के अनुसार।
वाच्य के भेद के उदाहरण vachya ke bhed
- कर्तृवाच्य
- कर्मवाच्य
- भाववाच्य
कर्तृवाच्य क्रिया के उस रूपांतर को कर्तृवाच्य कहते है, जिसमें क्रिया के कर्त्ता के लिंग वचन एवं पुरुष के अनुसार अपना रूप बदलती है। स्पष्ट है की इस वाच्या में क्रिया कर्त्ता के अनुरूप अपना रूप बदलती है। अर्थात क्रिया के लिंग और पुरुष कर्त्ता के अनुसार होते है। उदाहरण- राम पुरतक पढ़ता है। मैंने पुस्तक पढ़ी।
कर्मवाच्य कर्मवाच्य उसे कहते है जब क्रिया का फल कर्त्ता पर न पड़कर कर्म पर लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार पड़ता है। इस प्रकार इस वाच्य के अंतर्गत कर्त्ता करण के रूप में और कर्म कर्त्ता के रूप में प्रयुक्त होता है। तथा क्रिया कर्म के अनुसार रूपांतर होती है। उदाहरण- पुस्तक पढ़ी जाती है। आम खाया जाता है।
भाववाच्य भाववाच्य में क्रिया न तो कर्त्ता के अनुसार होती है और ना कर्म के अनुसार। इस वाच्य में क्रिया सदा एकवचन, पुल्लिंग और अन्य पुरुष में रहती है तथा कर्त्ता और कर्म दोनों से मुक्त हो जाती है। उदाहरण- मुझसे उठा नहीं जाता। मोहन से टहला भी नहीं जाता। धूप में चला नहीं जाता।
समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण Samas in Hindi
पद-परिचय pad parichay
वाक्य में प्रयुक्त प्रत्येक सार्थक शब्द को पद कहते है, तथा उन शब्दों के व्याकरणिक परिचय को पद परिचय कहते है। जैसे हम अपना परिचय देते हैं, ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं, उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक्य में जो शब्द होते हैं,उन्हें ‘पद’ कहते हैं। उन पदों का परिचय देना ‘पद परिचय’ कहलाता है।
पद पाँच प्रकार के होते हैं pad parichay ke bhed
- संज्ञा
- सर्वनाम
- विशेषण
- क्रिया
- अव्यय
संज्ञा pad parichay for sangya
संज्ञा का पद परिचय देते समय निम्नलिखित पहलुओं की जानकारी देनी चाहिए- संज्ञा का भेद, लिंग, वचन, कारक, उस शब्द का क्रिया के साथ सम्बन्ध
उदाहरण- नेहाल ने नयी पुस्तक खरीद ली। नेहाल : व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एक वचन, कर्त्ता कारक खरीद ली : क्रिया का कर्ता, क्रिया का कर्म पुस्तक : जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्म कारक
सर्वनाम pad parichay sarvanam
सर्वनाम का पद परिचय देते समय निम्नलिखित पहलुओं की जानकारी देनी चाहिए- सर्वनाम का भेद उपभेद, लिंग, वचन, कारक, उस शब्द का क्रिया के साथ सम्बन्ध
उदाहरण- अनुजा और हम फिल्म देखने गए। हम – पुरूषवाचक सर्वनाम,उत्तम पुरूष,पुल्लिंग,बहुवचन, कर्ता कारक ‘देखने गए’ क्रिया का कर्ता।
विशेषण pad parichay visheshan
विशेषण का पद परिचय देते समय निम्नलिखित पहलुओं की जानकारी देनी चाहिए- भेद,उपभेद, लिंग, वचन, कारक, विशेष्य
उदाहरण- कपिल पहली कक्षा में पढ़ता है। पहली- संख्यावाचक विशेषण, निश्चित संख्यावाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एकवचन, अधिकरण कारक, कक्षा – विशेषण
क्रिया pad parichay kriya
क्रिया का पद परिचय देते समय निम्नलिखित पहलुओं की जानकारी देनी चाहिए- भेद (कर्म के आधार पर), लिंग, वचन, धातु, काल, कर्ता का संकेत
उदाहरण- श्रेया पत्र लिखती है। लिखती है – सकर्मक क्रिया, स्त्रीलिंग, एकवचन लिख-धातु,वर्तमानकाल, स्निगधा इसकी कर्ता
अव्यय pad parichay avyay
क्रिया विशेषण का पद परिचय देते समय निम्नलिखित पहलुओं की जानकारी देनी चाहिए- भेद, उपभेद, विशेष्य-क्रिया का निर्देश
उदाहरण- परंजित और रीता भाई-बहन हैं। और- समुच्चयबोधक अव्यय, समाधिकरण योजक परंजित और रीता- शब्दों को मिला रहा है
सम्बन्ध बोधक अव्यय का पद परिचय : व्यायाम के बाद विश्राम करना चाहिए। के बाद- सम्बन्ध बोधक अव्यय
समुच्चय बोधक अव्यय का पद परिचय : नरेश और प्रिया पढ़ाई करने जा रही हैं। और- समुच्चय बोधक अव्यय
विस्मयादि बोधक अव्यय का पद परिचय : अरे ! यह क्या हो गया ? अरे- विस्मयादि बोधक अव्यय
कारक – परिभाषा, भेद और उदाहरण Karak in Hindi
वाक्य भेद – रचना के आधार पर वाक्य के भेद for class 10
रचना की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद किये गये हैं– (1) सरल वाक्य (2) मिश्र वाक्य (3) संयुक्त वाक्य
सरल वाक्य – इसमें एक कर्ता और एक किया होती है। इसमें कोई भी आश्रित वाक्य नहीं होता है। जैसे- प्रणेश पतंग उड़ा रहा है। गाय घास चरती है। कछुए ने खरगोश को हरा दिया। माँ ने खाना बनाया।
मिश्र वाक्य – इसमें एक सरल वाक्य तथा दूसरा उपवाक्य होता है। यह ऐसा वाक्य हैजिसमें मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अतिरिक्त एक या अधिक समाणिका कियाएँहोती हैं। अर्थ संगति की दृष्टि से मिश्र वाक्य मुख्य वाक्य पर आधारित होता है।यह वही पुस्तक है, जिसे मै ढूंढ रह था।वह लड़क मेरा दोस्त है, जो पेड़ के पास खड़ा है।
संयुक्त वाक्य – जहाँ साधारण और मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अव्ययों द्वारा होता है। संयुक्त वाक्य में प्रयुक्त वाक्य एक-दूसरे पर आश्रित नहीं होते है। दुबई चलो और वहा शौपिंग करो। मैंने उसे बहुत मनाया परन्तु वह नहीं मानी।