Famous Swami Vivekananda Life Story in Hindi

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5 Short Swami Vivekananda real Life Moral Story that will inspire you to live your life to the fullest. The Motivational stories of Vivekananda is famous all over the world especially in America, Europe, and the Indian subcontinent, as Swamiji left the world, but his teachings, education, and the light of knowledge are still burning today with pride. Here is the Top 5 Vivekananda’s story which is easy to read and understand.

Swami Vivekananda Biography in Hindi

12 जनवरी, 1863 को स्वामी विवेकानंद यानी नरेंद्रनाथ का जन्म कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ था। उस समय भारत पर ब्रिटिश शासन था, और भारतीय लोग उनके गुलाम थे। स्वामी विवेकानंद के पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे और उसकी माँ श्रीमती भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं।

बचपन से ही नरेंद्र अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के और नटखट थे। अपने साथी बच्चों के साथ तो वे शरारत करते ही थे, मौका मिलने पर वे अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे।

नरेंद्र के घर में नियमपूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था। धार्मिक प्रवृत्ति की महिला होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवीजी को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण स्वामी विवेकानंद के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी। पाँच वर्ष की आयु में ही वह बड़ों की तरह सोचने तथा व्यवहार करने लगा था, और अपने आस-पास घटित होनेवाली घटनाओं के बारे में भी सोचकर स्वयं निष्कर्ष निकालता रहता था।

Swami Vivekananda Life Story in Hindi

Swami Vivekananda Information in Hindi

Biography of Swami Vivekananda in Hindi Details
नाम नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त
जन्म 12 जनवरी 1863, कलकत्ता (कोलकाता)
पिता का नाम विश्वनाथ दत्त
माँ का नाम भुवनेश्वरी देवी
मृत्यु तिथि 4 जुलाई, 1902
मृत्यु स्थान बेलूर, पश्चिम बंगाल

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Swami Vivekananda Childhood Story

Swami Vivekananda Life Stories

नरेंद्र जिस विद्यालय में पढ़ते थे, उस विद्यालय के एक शिक्षक बड़े क्रोधी थे। आवश्यकता महसूस करते ही वे छात्रों को कठोर शारीरिक दंड दिया करते। एक दिन शिक्षक एक बालक को उसके बुरे व्यवहार के कारण पीट रहे थे, नरेन्द्र हँसे क्योंकि उनके शिक्षक अनावश्यक रूप से गुस्से में थे और उस लड़के की पिटाई कर रहे थे।

नरेन्द्र को उस पर हँसते देख शिक्षक को गुस्सा आ गया और उसने नरेंद्र की पिटाई शुरू कर दी और कहा, “कहो, फिर कभी मेरी ओर देखकर नहीं हँसोगे।”

नरेंद्र के ऐसा नहीं कहने पर शिक्षक ने और अधिक पीटना शुरू किया और दोनों हाथों से उनके कान मलने लगे। यहाँ तक कि कान पकड़कर ऊँचा उठाते हुए उन्हें बेंच पर खड़ा कर दिया। नरेंद्र के एक कान से खून भी बहाने लगा था। नरेंद्र को बहुत गुस्सा आया क्योंकि अब वह और दर्द सहन नहीं कर सकता था। वह क्रोधित हो कर उस शिक्षक से कहा, “मेरे कानों को निचोड़ना बंद करो। तुम मुझे मारने वाले कौन हो?”

Vivekananda Life Story

सौभाग्य से एक शिक्षक बहुत शोर सुनकर कक्षा में आ पहुंचे और वह थे श्री ईश्वरचंद्र विद्यासागर। नरेंद्र ने सारी घटना उसे सुनाई और हाथों में पुस्तकें उठाते हुए कहा कि मैं सदा के लिए यह विद्यालय छोड़कर जा रहा हूँ। श्रीईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उन्हें अपने कमरे में ले जाकर काफी समझाया और आदेश दिया गया कि विद्यालय में इस प्रकार का दंड नहीं दिया जाएगा।

जब नरेंद्र की मां को इस घटना के बारे में पता चला, तो वह बहुत दुखी हुई और उसने फैसला किया कि वह अपने बच्चे को इस प्रकार के स्कूल में कभी नहीं भेजेगी। लेकिन जब नरेंद्र का दिमाग शांत हो गया, उसने उस स्कूल में जाना शुरू कर दिया, लेकिन उसका कान ठीक होने में कई दिन लग गए थे।

Motivational Quotes for Students

Swami Vivekananda Short Story in Hindi

Swami Vivekananda Story in Hindi

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स्वामी विवेकानंद अलग-अलग गांव में प्रवचन देने जाते थे। एक दिन बड़े से गांव में स्वामी विवेकानंद को लोगों ने प्रवचन के लिए आमंत्रित किया था। उस गाँव में जाने के लिए स्वामी विवेकानंद को 2-3 गाँव पार करने पड़ रहे थे।

जब स्वामी विवेकानंद एक गाँव से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति पीछे से आ रहा है। वह आदमी स्वामी को पीछे से बहुत ही बुरी गालिया दे रहा था। लेकिन उस आदमी की बुरी गालिया का असर स्वामी विवकेकानंद पर नहीं पड़ रहा था और ना ही वो गुस्सा हो रहा था।

जब गांव की सिमा आ गई तब स्वामी जी रुके और उस आदमी से बोले, “देखो भाई, तुम्हे जितनी भी गालियां देनी हो तो यहाँ तक ही दे। यदि तुम उस गांव में ही मेरे पीछे-पीछे आकर गालियाँ दोगे, तो हो सकता है की वहां कुछ लोग तुम्हें दंडित कर सकते हैं। और अगर मैं तुम्हें बचाने में सक्षम नहीं रहा तो, मेरी वजेसे तुम जैसे विद्वान् की पिटाई हो जाएगी और उसका पाप मुझे लगेगा।”

उस आदमी ने जो भी किया उसके लिए उसे बहुत अफ़सोस हुआ और उसने तुरंत पछतावा हुआ। उसने स्वामी से माफ़ी मांगी और वहा से भाग निकला।

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Inspiring Swami Vivekananda Life Story in Hindi

Swami Vivekananda Life Story in Hindi

ये कहानी तब की है जब नरेंद्र का दाखिला ‘मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट’ में करवा दिया गया था। इस स्कूल में आने के बाद भी नरेंद्र के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। वह पहले जैसा ही था, मस्ती करना, बहुत बाते करना, और कक्षा में हँसना।

एक दिन एक शिक्षक कक्षा में पढ़ा रहा था। नरेंद्र अपने दोस्तों के साथ बात करने में व्यस्त था। यह देखकर शिक्षक को बहुत गुस्सा आ गया। उन्होंने नरेंद्र के एक दोस्त जो बाते कर रहा था उसको खड़ा करके उसी विषय का प्रश्न पूछा, जो वे पढ़ा रहे थे। सभी छात्रों का ध्यान तो नरेंद्र की बातों की ओर था, फिर भला वे शिक्षक के प्रश्न का उत्तर कैसे दे पाते।

स्वामी विवेकानंद की जीवन कथा

सबसे बाद में शिक्षक ने नरेंद्र को खड़ा करके उससे भी वही प्रश्न पूछा। बिना डरे नरेंद्र ने अपने शिक्षक के सवालों के सभी सही जवाब दिए। उत्तर पाकर बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्होंने उसे बैठने का आदेश दिया।

शिक्षक द्वारा बैठने के लिए कहने पर भी नरेंद्र नीचे न बैठा तो अध्यापक बोले, “नरेंद्र, तुम्हारा उत्तर बिलकुल ठीक है। मैंने तुम्हें बैठने के लिए कहा है, खड़ा होकर दंड पाने के लिए नहीं।”

“सर, मेरा जवाब सही है, मैं यह भी जानता हूं, लेकिन फिर भी मैं सजा का हकदार हूं।” नरेंद्र ने गंभीरता से अपने शिक्षक से कहा। “क्यों?” शिक्षक ने नरेंद्र की बात सुनकर आश्चर्य से पूछा।

“क्योंकि सर मैं कहानी सुना रहा था और वे सभी मेरी बात सुन रहे थे। मुझे भी उनके साथ दंडित किया जाना चाहिए।” नरेंद्र ने शांतिपूर्व से कहा। नरेंद्र की बात सुनकर शिक्षक बहुत खुश हुए। उसके पास आकर पीठ थपथपाते हुए बोले, “नरेंद्र, एक दिन आप निश्चित रूप से भारत के महान व्यक्ति में से एक बन जाएंगे।”

शिक्षक की बातों का नरेंद्र पर यह प्रभाव पड़ा कि इसके बाद नरेंद्र ने स्कूल में शरारत करना छोड़ दिया।

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Swami Vivekananda Success Story in Hindi

Swami Vivekananda Life Story in Hindi

एक दिन स्वामी विवेकानंद के आश्रम में एक व्यक्ति आया जो देखने में बहुत दुखी लग रहा था। वह स्वामीजी के पास गया और बोला, “महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ, मैंने अपनी हिंदगी मैं काफी लगन से मेहनत की है, लेकिन अब तक कभी भी सफल नहीं हो पाया हूँ। मैं इतना पढ़ालिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ, भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है।” यह कहकर रोने लगा।

स्वामी को पता था कि आदमी किस समस्या का सामना कर रहा है। उन दिनों स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था, उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम कुछ दूर जरा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा.” स्वामीजी की यह बात सुनकर वह आदमी हैरान रह गया और फिर कुत्ते को लेकर कुछ दूर निकल पड़ा।

कई मील तक कुत्ते के साथ घूमने के बाद वह आदमी वापस लौट आया। स्वामी आश्रम के द्वार पर प्रतीक्षा कर रहे थे। स्वामी जी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अभी भी ताज़ा रहा था जबकि कुत्ता हाँफ रहा था और बहुत थका हुआ लग रहा था।

Vivekananda Story

स्वामी जी ने हस्ते हुए उस आदमी से पूछा, “ये कुत्ता इतना ज्यादा कैसे थक गया जब कि तुम तो अभी भी साफ सुथरे और बिना थके दिख रहे हो?” तो उस आदमी ने कहा, “मैं तो सीधा साधा अपने रास्ते पे चल रहा था लेकिन ये कुत्ता गली के सारे कुत्तों के पीछे भाग रहा था और लड़कर फिर वापस मेरे पास आ जाता था। मान ना पड़ेगा यह कुत्ता बहुत सक्रिय और स्वस्थ है।”

स्वामी जी ने हस्ते हुए कहा, “यही तुम्हारे सभी प्रश्नों का जवाब है, तुम्हारी मंजिल तुम्हारे आस पास ही है वो ज्यादा दूर नहीं है, लेकिन तुम मंजिल पे जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और अपनी मंजिल से दूर होते चले जाते हो।”

स्वामी जी की बातों ने आदमी के दिल को छू लिया। उसे अपने गलती का एहसास हो गया था। अब वह बिना किसी शिकायत के कड़ी मेहनत करने लगा।

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Swami Vivekananda ki Jivani Kahani

Swami Vivekananda ki Jivani Kahani

एक दिन एक व्यक्ति स्वामी विवेकानंद के पास आया और बोला, “स्वामीजी, मैं इस गाँव में विशेष रूप से आपसे मिलने आया हूँ। मैंने सब कुछ त्याग दिया है, लेकिन मुझे शांति नहीं मिल रही है। मेरा मन यहां-वहां भटकता रहता है इसलिए मैं अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा हूँ। मैं कई गुरुओं के पास गया लेकिन मुझे इसका कोई हल नहीं मिला।”

स्वामी विवेकानंद ने उस व्यक्ति की ओर देखा और कहा, “क्या आप सचमुच जीवन में शान्ति चाहते हैं?” “जी हाँ, उसी के लिए तो आपके पास आया हूँ।” बड़ी दुखी आवाज से उस व्यक्ति ने कहा।

“ठीक है मेरे पास आपके लिए एक मार्ग है और आपको इसे बिना किसी विचार के करना होगा।” स्वामीजी ने उस व्यक्ति से कहा। वह व्यक्ति राजी हो गया।

स्वामी जी ने कहा, ‘घर से निकलो, पड़ोस में जो भी भूखा मिले, उसे अन्न दो, प्यासा मिले, उसे पानी दो, नंगा मिले, उसे कपड़ा दो, बीमार मिले, उसे दवा दो, दीन -दुखी मिले, तो उसे दिलासा दो. इसी से आपको सुख मिलेगा. इसी से आपको शान्ति मिलेगी। यह जीवन में शांति पाने का सबसे आसान और सरल तरीका है।”

पहले तो उस आदमी को यह करना अजीब लगा। लेकिन दिन पर दिन ऐसा करने के बाद आखिरकार उसे अपनी जिंदगी की शांति मिल गई। मानव-जाति की निस्वार्थ सेवा से ही इन्सान को सच्ची शांति मिल सकती है।

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